सहसा उठ कर चल पड़ते हैं,
इन क़दमों को कैसे रोकें हम,
क्षण भर मैं तन - मन सब वारें,
मनोभाव को कैसे रोकें हम,
जिसका पलों का उद्गम मैं मन हुआ हो,
हर वो पल हो जाता अमर है,
सीने मैं जो दहके जीने की ज्वाला,
उसी से जीवन पथ प्रज्वलित है,
कर्म के धागे कर्म ही बांधे,
तोड़े ना टूटे ये ऐसे धागे,
दोड़े रगों मैं स्पंदन कर जो,
रक्त मैं बहता भावों का जल,
राही अपनी राह तू चुन ले,
चलता चल तू बस इश्वर के बल,
तेरी इच्छा तुझ से उठ कर,
ले चलती है तुझको जीवन के पथ पर,
निर्वान बब्बर
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