Jo Din Bachpan Ke Guzar Gaye, Wo Din Bhi Kitne Acche The. Poem by Abhishek Omprakash Mishra

Jo Din Bachpan Ke Guzar Gaye, Wo Din Bhi Kitne Acche The.

जो दिन बचपन के गुजर गये, वो दिन भी कितने अच्छे थे.
बस एक लगन थी मिलने की, दिल भी तब अपने सच्चे थे.
मासूम सी चाहत दोनों की, जज्बात भी मानो कच्चे थे.
दिल की हेराफेरी करली, जब दिल से दोनों बच्चे थे.

एक जमाने से दिल मेरा बस तेरी याद में रोता है.
हमको तब मालूम न था, कि इश्क मे ऐसा होता है.
तुमने भी तो चाहा था, क्या हाल तुम्हारा है बोलो.
मेरे ख्यालों में खो कर, क्या तेरा चैन भी खोता है.

गर मिल जाओ तो पूरी लिख दूँ, छूटी हुई कहानी को.
लौट आओ तेरे नाम मैं कर दूँ, अपनी पूरी जवानी को.
इश्क मुकम्मल हो जाता गर साथ मेरा तुम दे देते.
चुप कर दो तुम खुद आकर, इस जालिम दुनिया बेगानी को.

' अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा '

Friday, November 7, 2014
Topic(s) of this poem: love and pain
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Childhood Love
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