Kya Ho Gaya Shahar Ko (Hindi) क्या हो गया शहर को Poem by S.D. TIWARI

Kya Ho Gaya Shahar Ko (Hindi) क्या हो गया शहर को

क्या हो गया है मेरे इस शहर को
आज हर शख्श परेशान लगता है।
जाने किस होड़, हरेक रहा दौड़,
अपनी मंजिल से अनजान लगता है
भरा खोखलापन पत्थरों के बने
इन बंगलों में, आलीशान लगता है।
खुद की खुदी में हुआ खुदगर्ज ये
खुदा को भी भूला इंसान लगता है।
दरिंदों के खौफ से ढही बहादुरी
खंडहरों का बस निशान लगता है।
बिगड़ चुके है हालात इस कदर
सुधरना नहीं आसान लगता है।
लूटने में जुटे सब एक दूसरे को
इंसानियत का श्मशान लगता है।

- एस० डी० तिवारी

Tuesday, September 27, 2016
Topic(s) of this poem: philosophy
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