नमक भर जिंदगी (Life Is Like Salt) Poem by Kezia Kezia

नमक भर जिंदगी (Life Is Like Salt)

नमक भर है जिंदगी

थोड़ी नमी मिली नही

घुलना शुरु

और जितना सहेजो जितना सवारो

खो ही जाती है नमी मे

आँखों की नमी

प्रेम की नमी

चाहतों की नमी

घोल जाती है जिंदगी को

मन के खामोश भाव

रिसना शुरु कर देते है

एक महीन रेखा बना जाते हैं

नमक भर है जिंदगी

बिना नमी के झर झर बहती है

ये जिंदादिल जिंदगी

हाथों मे ठहरती ही नही

नमी पाते ही लथपथ हो गिर पड़ती है

नमक सी आंखो मे चुभती है

थोड़ी रिश्तों की सेक दो

नमी हवा हो जाती है

फिर से हल्की हो जाती है जिंदगी

केवल नमक भर ही है जिंदगी

*******

Wednesday, March 29, 2017
Topic(s) of this poem: philosophical
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success