मजिल के करीब manzil ke kareeb Poem by Shiv Abhishek Pande

मजिल के करीब manzil ke kareeb

कदम कदम बढ़ रहा हूँ
मै मजिल के करीब
तीव्र संकल्पों से लिखता हूँ
खुद अपना नसीब
मेरी हसरतों ने दी है
मेरे सपनो को ये उड़ान
ए मेरे मुकद्दर
तू है मेरे कर्मो का ही अंजाम
मै जो भी हूँ वो मैंने मेहनत से कमाया है
ये वो जिस्म है जो संघर्षों की आग मे
कुंदन बन पाया है
नींद के सपने नहीं है ये
इन सपनो को मैंने जागते हुए सजाया है
ये वो घरोंदे है जिन्हें तिनका तिनका मैंने कमाया है
मैंने अपनों का दरद भी सहा है
गैरों ने दिया मुझे सहारा है
मेरी हसरतें उन राहों सी है
जिनोहने मुझे आडा टेडा घुमाया है
फिर भी मै थकता नहीं रुकता नहीं
मेरी मजिल का मुझमे हरदम नजारा है
मै उस नदी की तरह हूँ
जिसके दिल मे सिर्फ सागर ही सागर समाया है
' शिव काव्य लहरी '

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