Moon Vs Cloud! Poem by Ritika Abigail

Moon Vs Cloud!

कल चाँद बड़ा ख़ुशनुमा सा था
शायद किसी के ज़िक्र से चहका हुआ सा था
चेहरे पे अपने दाग़-ए-मोहब्बत सज़ाएँ हुए सा था
हर प्यार करने वाले की
नज़र-ए-आशियाँ में था

ख़ुशी किसी की बर्दाश्त नहीं होती
किसी से शायद,
कोई तो शायद जल सा गया था
तभी बिन मौसम ये बादल बरसने को चला था,

रात भर जम के बरसा,
चाँद ओझल हो गया
उसकी ताक़त के आगे
चाँद बेबस हो गया
मोहब्बत के अक्स में लिपटे
वो बदनाम अकेला हो गया ।।।

#RN

Friday, June 13, 2014
Topic(s) of this poem: moon
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