हे प्रभु
मैं पानी की एक बूंद
तू विराट सागर
हर पल तुझमे रहूँ
बन स्वयं एक सागर
हे प्रभु
तू कृष्ण बन
अपनी चतुरता सिखा
मैं दुनिया की कुटिलता
से खुद को बचा सकू
हे प्रभु
तू राम बन
अपना आदर्श बता
मैं सत्य की राह पर चल
अपने स्वाभिमान को बचा सकू
हे प्रभु
तू शिव बन
इतनी शक्ति दे
मैं दुनिया की विष को
नफरत और जलन को
आराम से पचा सकू
हे प्रभु
तू हनुमान बन
मुझे बल प्रदान कर
मैं अन्याय और दुष्टों का
सामना कर सकू
मुझे तो अपनों ने भी साथ छोड़ा
तो पराये की क्या कहूँ
जिन को मैनें प्यार दिया
उनकी नफरत अब कैसे सहूँ
एक तू ही मेरा सहारा है
तू ही सब से प्यारा है
इस डूबती नैया का
तू ही एक किनारा है
लेखक: रमेश कावडिया
२5 मार्च २०१२ रविवार
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