नैना नीर बहावें, बांधे कोन अब बाँध (Naina Neer Bahavai, Bandhe Kon Ab Bandh) Poem by Nirvaan Babbar

नैना नीर बहावें, बांधे कोन अब बाँध (Naina Neer Bahavai, Bandhe Kon Ab Bandh)

भौर भये उठ जाग मैं बैठि,
जागी-सोइ, टूट-तोड़ बिताई सारी रैन,

बिन साजन, सखी रैन गुज़ारी,
ना सुख मोहे, ना, चेन,

का कहें, तुम से, अब हम ना जानें,
हम हुइ जात, पाषण,

मिट्टी हम हैं, बिन साजन के,
जैसे राख अब हम, बन बैठे, जल-जल, विरह के साथ,

साजन बिन अब, कोई ना दूजा,
जो इस बुत में, डाले जान,

कोय अब हमको, रंग-रास ना भावै,
ना भावे, कोई काज,

कोंन करेगा, मिस्रि बातेँ,
कोंन सुनाए, अब शहद सी बात,

कागज़ भया, अब, मोर, निशानी,
कोरा मन, अब, कैसे भर जावे, कलम, नहीं जब हाथ,

मन का ताप, बड़ी-बड़ी, जावे,
झर-झर, नैना नीर बहावें, बांधे कोन अब बाँध,

निर्वान बब्बर
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Sunday, January 29, 2017
Topic(s) of this poem: love and dreams
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