Naukaree Poem by Upendra Singh 'suman'

Naukaree

Rating: 4.5

ज़िन्दगी का सौदा करती है नौकरी|
देने से मुझको मेरा मरती है नौकरी|

कहने को तो इसने मेरा गुजर किया|
अपना ही पेट मुझसे भरती है नौकरी|

जो हैं भोले-भाले उनका ये खून पीती|
मक्कारों से अब भी डरती है नौकरी|

सावन बसंत मेरे इसने है ‘सुमन' लूटे|
दिल को रौंदकर के गुजरती है नौकरी|

इसने मेरे सीने पे जम के चलाये खंजर|
दूर मुझको मेरे यार से करती है नौकरी|

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Friday, July 11, 2014
Topic(s) of this poem: work
COMMENTS OF THE POEM
Arun Chauhan 05 December 2015

Real life of private job man, beautiful thaught

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Gajanan Mishra 11 July 2014

Upendra singh suman, Very fine one, thanks. deep observation is there.

2 0 Reply
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