ज़िन्दगी का सौदा करती है नौकरी|
देने से मुझको मेरा मरती है नौकरी|
कहने को तो इसने मेरा गुजर किया|
अपना ही पेट मुझसे भरती है नौकरी|
जो हैं भोले-भाले उनका ये खून पीती|
मक्कारों से अब भी डरती है नौकरी|
सावन बसंत मेरे इसने है ‘सुमन' लूटे|
दिल को रौंदकर के गुजरती है नौकरी|
इसने मेरे सीने पे जम के चलाये खंजर|
दूर मुझको मेरे यार से करती है नौकरी|
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'
Upendra singh suman, Very fine one, thanks. deep observation is there.
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Real life of private job man, beautiful thaught