निर्वान के दोहे (NIRVAAN KE DOHE) Poem by Nirvaan Babbar

निर्वान के दोहे (NIRVAAN KE DOHE)

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धरती सूखी, पनघट सूखा, ... सूखा भयो आकाश,
तारा टूटा, उषा हारी, अम्बर भयो अनाथ,

कुल का कुल ही, नाश हो गया, कैसा कियो ये काज,
मुठी भर मांगी थी खुशियाँ, झोली भर मिली राख,

मधु सी, कर ली जिव्हा, लेकिन, अंतर मैं, है ग़ार,
काया गागर, झूठ का जल भर, जीता हर इंसान,

राग भैरवी गाने वालो, तुम्हारे चहुँ ओर अंधकार,
मैला मन, मैली भावना, पंकज रहा ना, मन का भाव,

सकल जुग भया बांवरा, माया - माया ही चिल्लाये,
सारे धाम घूम कर भी, माया - माया ही रमता जाए,

शब्द - शब्द मैं प्राण हैं, ये ले भी लेते प्राण,
हर शब्द संभल कर बोलिये, शब्द शूल और ढाल,

सतगुर जानी जान है, उनकी महिमा अपरम पार,
मार्ग दिखाएँ वो धर्म का, सदकर्म का धागा बांध,

मानुष तू ही देवता, तू ही आत्मज्ञान को पाए,
लोचन आत्म का खोल कर, तू भव सागर तर जाए,

बुद्धि बैरी है, हृदय की, बस बैर करना जानती,
प्रेम के उन्माद को, ना जानती, ना पहचानती,

निर्वान बब्बर

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