सबक Poem by Pushp Sirohi

सबक

कल खबर आई —
जो लड़कियों पर हँसते थे,
नज़रों से ज़ख़्म देते थे,
राहों में दीवार बनते थे —
आज उन्हीं के घर बेटियाँ पैदा हुई हैं।

अब डर ने उनका पता पूछ लिया है —
अब सन्नाटे में भी आवाज़ सुनाई देती है,
अब सड़कें उनकी नहीं,
सच का आईना हो गई हैं।

जो कल तक कहते थे —
"ग़लती लड़की की होती है…"
आज वही आसमान को देख कर
दुआ माँगते हैं —
"मेरी बेटी को कुछ न हो…"

किस्मत ने उत्तर नहीं दिया,
बस इतना कहा —

"न्याय हमेशा चीख़कर नहीं आता,
कभी-कभी चुपचाप…
बेटी बनकर जन्म लेता है।

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