मेरी कामयाबी देखकर,
नकाम लोगों की नाकामियाबी ने मचा दिया शोर —
मैं तो चुप था, अपनी लड़ाइयों में उलझा,
पर उन्हें तकलीफ़ हो गई
कि मैं गिरा क्यों नहीं… और बार-बार क्यों उठा।
जो लोग कभी कहते थे —
"तुझसे नहीं होगा…"
आज वही भीड़ में खड़े हैं,
पर तालियाँ नहीं बजा रहे —
बस अपनी नाकामी
मेरी जीत के नाम लिख रहे हैं।
उन्हें मेरी मेहनत नहीं दिखती,
बस मेरी मंज़िल चुभती है,
उन्हें रास्ते के घाव नहीं दिखते,
बस अंत का नज़ारा जलता है।
किसी को तकलीफ़ मेरी सफलता से नहीं,
अपनी असफल कोशिशों से होती है —
जो हर उठते हुए इंसान के सामने
और ज़्यादा छोटी लगने लगती हैं।
मैंने किसी का हक़ नहीं छीना,
किसी का रास्ता नहीं रोका,
मैं तो बस चुपचाप चलता रहा…
पर उनकी नफ़रत की आवाज़
उनकी हार से ज़्यादा ऊँची हो गई।
कभी-कभी कामयाबी चिल्लाती नहीं —
दूसरों की नाकामियाँ चिल्लाने लगती हैं।
और मैंने सीख लिया —
कि शोर चाहे जितना भी हो,
सफलता हमेशा ख़ामोशी में ही सबसे मज़बूत लगती है।
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