What The Burning Sun Teaches Me...On Life (Hindi Version) Poem by Himanshu Mishra

What The Burning Sun Teaches Me...On Life (Hindi Version)

पूरब की पवन इक संदेशा ले कर आयी है
दूर जो क्षितिज में सुलगती इक चिंगारी है
कमज़ोर दुर्बल वृत जैसा आज कुछ उगा वहाँ
मुझसे टकराने चला है, साक्षी जिसका सारा जहाँ
हाथ दिखाया, रुका नहीं वो; डर दिखाया, झुका नहीं वो
फूँक, बुझाना चाहा उसे, और सुलगता चला गया वो
'सुन बच्चे! तू भले तेजस्वी सूर्य है
पर मुझ पर विजय, तेरे सपने से भी दूर है'

मेरी दुनिया ने भी आज उसी की राह चुनी
हर किसी की आह में मैने उसी की वाह सुनी
वो शहँशाह की तरह आकाश में है जी रहा
उसी के दयासागर में मैं भी आज पी रहा
मेरी आँखें भी नहीं टिकती हैं उसके ते़ज के सामने
मेरा अहंकार भी टूट गया है उसके वेग के सामने
इस दिन को किसने देखा था, जब मैं पूरा टूट गया
युध्ह भी जीता उसने और मेरा मन भी वो जीत गया

सच कहा था किसी ने, बक्शना समय की आदत नहीं
डूब रहा वो अजेय सूर्य, जिसकी आज हिफाज़त नहीं
उसके साथ ही आज करुनासागर सूख जायेगा
ख़त्म हुआ जो प्रकाश, अब फिर अंधेरा छायेगा
मैं देख नहीं सकता उसे कि अब ये आँखें थक चुकी हैं
निराकार होगा वो यद्यपि शक्तियाँ मिट चुकी हैं
ये धरती ऐसे वीरों को बार-बार नहीं देख पाती
ये प्रकृति ऐसे वीरों से बार-बार नहीं सीख पाती

इक बहरूपिया है, प्रताड़ित कर रहा जिसे यह रात
ये मेरा सूरज नहीं, उसमें है न कोई दाग
चाँद कहते हैं इसे, सूरज बनना चाहता है
शीतलता से आपने चरित्र में निखरना चाहता है
वो अनंत से भी दूर है, पर जिंदा है वो
वो कर्मों से मजबूर है, हर मन की चिंता है वो
हे समय के देवता! उसको तुम जीवनदान दो
हम सब के पालनहार, उस अनमोल वरदान को

This is a translation of the poem What The Burning Sun Teaches Me...On Life by Himanshu Mishra
Thursday, March 20, 2014
Topic(s) of this poem: inspirational
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
The narrator was the ruler of the dark world and thought that no luminosity can defeat him. The Personified sun came as a little spark and won his kingdom and the narrator's heart too.
Verse 1: The rising sun/orange sun
Verse 2: The ruling sun/white sun
Verse 3: The setting sun/red sun
Verse 4: Moon/the black sun
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