कह रहा हू आज फिर में,
तुम बदल जाओ,
निकल् आओ तिमिर से,
कही पत्थ से न डिग जाओ,
...
अब ना जाने बात क्या है,
प्यार से ने अब हमैं वो देखती है
देखती है ग्रसित कुंठा और शंका...... Upcoming
...
तुम बदल जाओ
कह रहा हू आज फिर में,
तुम बदल जाओ,
निकल् आओ तिमिर से,
कही पत्थ से न डिग जाओ,
कह रहा हू आज फिर में......
मानता हू भावनाओ को आपकी में,
पर इस समय नही इसके काबिल में,
खुद को खीँचो,
बाँध जाओ समाज के सींखचो में,
नही चल सकता अलग में,
इस समाज के चलन से,
व्यवस्था बिगड़ सकती है इसकी,
तेरे मेरे मिलन से.........................