दो विपरीत ध्रुवों के बीच,
संतुलन नाप,
रस्सी पर झूलती नटनी,
गिरना जाने बिना संभलती है,
...
प्रेम
दो विपरीत ध्रुवों के बीच,
संतुलन नाप,
रस्सी पर झूलती नटनी,
गिरना जाने बिना संभलती है,
पार कर जाती है फासले
अंगूठे और ऊँगली के
बीच बैठी
खाली जगह के सहारे
बांच रक्खी हैं भाग्यारेखायें
प्रेम ने ।