Meera Trivedi

Meera Trivedi Poems

ये मन बावरा मेरा ना जाने कहाँ जाने की चाह रखता है …
छल्ला है वो जो रेगिस्तान में भी डूबने की चाह रखता है …

लोग कहेते है प्यार आग का दरिया है , पर ये दीवाना उस आग में भी तैरने की चाह
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The Best Poem Of Meera Trivedi

Chah Rakhta Hai....

ये मन बावरा मेरा ना जाने कहाँ जाने की चाह रखता है …
छल्ला है वो जो रेगिस्तान में भी डूबने की चाह रखता है …

लोग कहेते है प्यार आग का दरिया है , पर ये दीवाना उस आग में भी तैरने की चाह
रखता है ….

वाकिफ है वो इस मतलबी और खुदगर्ज दुनिया से,
फिर भी उसमे अपने सपनो की हसीन दुनिया सजानेकी चाह रखता है …
और जिंदगी के इन खुबसूरत लम्हों को अपने छोटे से दामन में समेट ने की चाह रखता है ….

एक तरफ इन समुन्दर की लहेरो से बाते करता है,
पर फिर भी उसके सैलाबों से लड़ने की चाह रखता है …

पंख नहीं है उसे,
फिर भी ये मनमौजी उस नीले आसमान में हौसलों की ऊँची उडान भरने की चाह रखता है …

वैसे तो बड़ा कोमल है ये मन जो अक्सर हवा के एक हल्के झोके से भी टूट जाता है,
पर फिर भी उन कठोर चट्टानों को तोड़ने की चाह रखता है..

दुनियावाले जहाँ सपनो को देखा करते है ,
वहा ये पगला सपनो को आवाज देने की चाह रखता है …

वैसे तो बारिश की हर बूंद उसे सुहावनी लगती है,
पर फिर भी ये बावला सूरज की उन तपती किरणों में बड़े मौज से भीगने की चाह रखता है

रिश्तो की इतनी समज नहीं है उसे,
फिर भी रिश्तो के समुन्दर की गहेराइयो से मोती खोजने की चाह रखता है ….

वैसे उसका मुकाम तो ये ज़मीन पर है ,
फिर भी ये आवारा उन परिंदों की तरह ऊपर बादलो से खेलने की चाह रखता है …

बड़ा बावरा है मेरा ये मन, ना जाने कहाँ कहाँ जाने की चाह रखता है …..



-Meer@ Tr! ved! .....

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