निशुल्क Poem by Ajay Srivastava

निशुल्क

Rating: 5.0

घास पर ओस की बूंद ने आखो को
छण भर में ताजगी का एहसास।
ठंडी मंद लहलहाती हवाओ ने
पल भर में शरीर में स्फूर्ति का एहसास।
बीज ने कब छोटे से पौधे का रूप ले लिया
जीवन रक्षक वायु देने लगता है।
छोटी सी कली ने जब फूल बन कर
पल भर में वातावरण को सुगन्धित कर दिया।
सारा का सारा केवल हमारे स्वस्थ के लिए
निशुल्क सेवा कब और कौन करता है।

निशुल्क
Saturday, October 24, 2015
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COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 24 October 2015

प्रकृति अपनी देन की कोई कीमत नहीं मांगती. यह सबके लिए निशुल्क उपलब्ध है. कविता में इस सत्य को पूरी तीव्रता से व्यक्त किया गया है. धन्यवाद, मित्र.

0 0 Reply
Abdulrazak Aralimatti 24 October 2015

Verily, the bounty of nature for man is very blissful...10

1 0 Reply
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