भूल करता हूँ क्या? Poem by Lalit Kaira

भूल करता हूँ क्या?

ये जो मैं तुमको ढूंढता हूँ
कविता में,
गिरे हुए
कुचले
तिरस्कृत शब्दों को उठाकर
पिरोकर पीड़ा की डोर में
गले में पहन लेता हूँ।
भूल करता हूँ क्या?

किसी सुन्दरी की वेणी से गिरे
फूल की तरह
धुल में सना
मरणासन्न!
बारिश की छमक में
बसंती हवा की मादक छुअन से
मुस्कुरा उठता हूँ।
भूल करता हूँ क्या? ?
कहो न?
भूल करता हूँ क्या?

Monday, November 2, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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