लौट आए तू मुझे ख्वाहिश नहीं है Poem by Lalit Kaira

लौट आए तू मुझे ख्वाहिश नहीं है

Rating: 3.0

बादलों का चांद पर पहरा हुआ है
रात का रंग आज कुछ गहरा हुआ है

द्वार पर ठिठके हुए हैं नींद के पद
ज्वार अविचल आंख में ठहरा हुआ है

मैं न बोलूंगा कि तू रुसवा न होगी
तू न रो दे टूट कर, खतरा हुआ है

रोशनी के घर मिरा है क्या, मगर अब
रोशनी को घर वही अखरा हुआ है

लौट आए तू मुझे ख्वाहिश नहीं है
बाद तेरे ही ललित निखरा हुआ है

Thursday, December 21, 2017
Topic(s) of this poem: love,love and life
COMMENTS OF THE POEM
RADHASHYAM 21 December 2017

बहत खूबसूरत कविता

0 0 Reply
Lalit Kaira 15 July 2018

धन्यवाद आदरणीय

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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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