दीवाली Poem by Upendra Singh 'suman'

दीवाली

दीवाले संग गठबंधन कर आई है इस बार दीवाली.
लील गई दीया और बाती तन की उजली मन कि काली.

कैसे दे दूँ उसके आने पर तुमको मैं बन्धु बधाई.
अँधियारे संग लिप्त गई जो रास रचाती हरजाई.
घोर दुपहरी कमर हिलाती छम-छम रजनी काली.
दिवाले संग गठबंधन कर आई है...........

Friday, November 20, 2015
Topic(s) of this poem: festival of light
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 20 November 2015

इस गीत में नयापन है. अभिव्यक्ति की मधुरता मन को बाँध लेती है. दीपावली में मन की टीस छुप नहीं पाती. धन्यवाद, मित्र.

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success