छुट्टियाँ Poem by Upendra Singh 'suman'

छुट्टियाँ

हँसती और खिलखिलाती आती हैं छुट्टियाँ,
हर गम को यारों दूर भगाती हैं छुट्टियाँ.

बच्चे हों या बड़े हों सबको ये दिल से प्यारी,
इनसे है महक उठती ये ज़िन्दगी हमारी.
इनमें है रंग करा-क्या कैसे तुम्हें बताएं,
इनकी हसीन दुनियाँ कैसे तुम्हें दिखाएँ.
हर दिल को यारों दिल से लुभाती हैं छुट्टियाँ,
हँसती और खिलखिलाती..............................

बचपन से जरा पूछो छुट्टियों की कहानी,
हर उम्र सुनाती है याद उनकी जुबानी.
बंद होते ही स्कूल दीखते हंसी नज़ारे,
धरती पे किलक उठते आसमां के सितारे.
जीवन में प्यारे रंग लुटाती हैं छुट्टियाँ,
हँसती और खिलखिलाती.....................

आती थी जब मटकती होली या फिर दीवाली,
चेहरे पे दौड़ उठती थी छुट्टियों की लाली.
बचपन था बड़ा भोला नटखट था और प्यारा,
स्कूल में पढ़ता था छुट्टियों का वो पहाडा.
जब भी हैं विदा लेतीं रूलाती हैं छुट्टियाँ,
हँसती और खिलखिलाती.....................

बच्चे हों या बड़े हों बूढ़े हों या सयाने,
छुट्टियों के खातिर सब करते हैं बहाने.
चाहे हों आला अफसर नौकर या कर्मचारी,
सबको है यार होती इन छुट्टियों से यारी.
दूर से ही सबको ललचाती हैं छुट्टियाँ,
हँसती और खिलखिलाती.....................
हर उम्र को होता है ‘सुमन’ इनका इंतजार,
उँगलियों हैं रोज गिनतीं कब आयेगी बहार.
किसको नहीं होगा भला इन छुट्टियों से प्यार,
हर दिल को हैं ये प्यारी हर दिल है बेकरार,
जीवन को रंगो-गुल से सजाती है छुट्टियाँ,
हँसती और खिलखिलाती.....................

आज़ादी की हर राह तो इनसे ही निकलती है,
ज़िन्दगी इनकी ही बाहों में आ मचलती है.
इनसे ही तो गुलजार है दुनियाँ का ये मेला,
इनके बिना तो लगता है संसार अकेला.
सबकी दुनियाँ में रहें यारों आबाद छुट्टियाँ,
हम तो कहते हैं और कहेंगे जिंदाबाद छुट्टियाँ.
हर ज़िन्दगी में धूम मचाती हैं छुटियाँ.
हँसती और खिलखिलाती.....................
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Thursday, December 10, 2015
Topic(s) of this poem: holiday
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 14 March 2016

Atyant sunder geet hay, I liked it.

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Rajnish Manga 10 December 2015

बच्चों और बड़ों सबको अपना मुरीद बना लेने की ताकत है इनमे. छुट्टियों का ऐसा मनोहारी वर्णन मिलना मुश्किल है. धन्यवाद, मित्र.

1 1 Reply
Upendra Singh Suman 12 December 2015

शुक्रिया, रजनीश जी

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