फट Poem by Ajay Srivastava

फट

धर्म के नाम पर लडने को फट से त्यार हो जाते है|
धर्म के नाम पर एक जुटता को लेकर फट से बिखर जाते है|
रिशवत लेने-देने को फट से त्यार हो जाते है|
रिशवत का विरोध पर फट से कार्य रोक देते है- कानून की दुहाई देते है|
निजी हित के लिए फट से देश हित को पीछे कर देते है|
देश हित के लिए फट से निजी कर्तव्य की दुहाई देते है|
नियम अपने हित मे हो तो फट से कहते है नियम लागू हो|
नियम हित मे न हो तो फट से नियम से अनजान बन जाते है|
अपनी अच्छी आदतो को फट से दिखाऔ|
देश को फट से प्रगति को और ले चलो|

Sunday, December 6, 2015
Topic(s) of this poem: running
COMMENTS OF THE POEM
Shakil Ahmed 06 December 2015

very real poem, you have painted your passions very well in the poem, thanks for sharing

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success