तुम मुझे दर्द दो गम दो Poem by Upendra Singh 'suman'

तुम मुझे दर्द दो गम दो

तुम मुझे दर्द दो गम दो, मैं तुम्हें खुशी के पल दूँ.
थोड़ा विश्वास मुझे दो, मैं साथ तुम्हारे चल दूँ.


मैं सत्य अहिंसा का प्रेमी, मानव मन का उद्गाता हूँ.
जीवन जन-मन हित जिनका, मैं गीत उन्ही के गाता हूँ.
आँसू दो मुझे सितम दो, मैं तुमको प्रेम विमल दूँ.
तुम मुझे दर्द दो गम दो, मैं तुम्हें खुशी के पल दूँ.


मुझको है परवा तनिक नहीं, मझधारों की तूफानों की.
मैं मानवता का चिर प्रेमी, फ़ितरत अपनी परवानों की.
तुम बाधाएँ दो भ्रम दो, मैं तुम्हें तुम्हारा कल दूँ.
तुम मुझे दर्द दो गम दो, मैं तुम्हें खुशी के पल दूँ.




मानवता की मैं ले मशाल, फिर रह चला मर्दानों की.
दुनियां क्या करती मत पूछो, ये बात है हम दीवानों की.
तुम गरल बहुत दो कम दो, मैं तुमको प्रेम नवल दूँ.
तुम मुझे दर्द दो गम दो, मैं तुम्हें खुशी के पल दूँ.


मैं अमा निशा का ज्योति पुंज, लड़ता रहता अंधियारों से.
मैं मांझी अपनी नईया का, क्रीड़ा करता मझाधारों से.
तुम मुझे द्वेष तम दो, मैं तुमको प्रभा प्रबल दूँ.
तुम मुझे दर्द दो गम दो, मैं तुम्हें खुशी के पल दू.



उपेन्द्र सिंह 'सुमन'

Friday, December 4, 2015
Topic(s) of this poem: human
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