श्रध्दा से पूरित अन्तस्तल, गाता है जिसका जयगान.
वह देव-भूमि वह मातृ-भूमि, वही है अपना हिंदुस्तान.
जो सिंहों सा तत्पर प्रतिपल, जिसमें पौरूष है मूर्तिमान.
जिसकी माटी के कण-कण से, हुँकार रहा है स्वाभिमान.
श्रध्दा से पूरित अन्तस्तल.............................
जिसकी महिमा गाती नदियाँ, गिरिराज प्रबल प्रहरी प्रधान.
सागर जिसका पाँव पखारे, वन्दन करता झुक आसमान.
श्रध्दा से पूरित अन्तस्तल.............................
जो विश्व-गुरू करुनानिधान, दुनिया को बांटा दिव्यज्ञान.
मानवता का शाश्वत प्रहरी, करता जो जनहित गरलपान.
श्रध्दा से पूरित अन्तस्तल.............................
जहाँ राम कृष्ण गौतम गाँधी, पले बढ़े और बने महान.
जिसकी माटी में खेल-खेलकर, धन्य हो गए हैं भगवान.
श्रध्दा से पूरित अन्तस्तल.............................
यह जन्म-भूमि यह पुण्य-भूमि, यह मनभावन वसुधा ललाम.
ऐसे पावन मंगल स्वदेश को, मेरा प्रणाम! मेरा प्रणाम!
श्रध्दा से पूरित अन्तस्तल............................
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
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