मित्रों,
मैंने दिल्ली में इण्डिया गेट से लेकर
चांदनी चौक की गलियों तक की कई बार खाक छानी
लेकिन,
मुझे कहीं भी नहीं दिखी गिरगिट की निसानी,
आखिर ऐसा कैसे, क्यों? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ?
सवालों को उछलता देख
मेरे भीतर का शोध-अध्येता मचल पड़ा
और मैं मंज़िल की ओर चल पड़ा,
बुराड़ी पहुँच दिल्ली के अनुभवी एक बुजुर्ग को देखा
तो उसके सामने ये सवाल रखा –
दादा, आपकी दिल्ली में कहीं गिरगिट क्यों नहीं दिखते?
आखिर, इसके पीछे क्या राज है?
बुजुर्ग छूटते ही बोला –
इसमें बड़ा राज है.
मैंने पूछा –दादा, क्या मतलब?
तब बुजुर्ग सज्जन ने मुझे समझाया
और दो टूक शब्दों में बताया कि –
खतरनाक ढंग से
रंग बदलने वाले बहुरूपिये नेताओं से
बेचारे गिरगिट इस कदर शरमा गये
कि एक दिन सारे के सारे
सदा के लिए धरती में ही समा गये.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’
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