पढ़ईया (भोजपुरी) Poem by Upendra Singh 'suman'

पढ़ईया (भोजपुरी)

करा जम के ये बबुआ पढ़ईया,
भागी उलटे पाँव शनि क अढ़ईया.

हथवा में तोहरे बा तोहार किस्मतिया,
ठानि लेबा जो तूं त भागी सब विपतिया.
नाची खुशाली ता-ता-ता थईया,
करा जम के ये बबुआ पढ़ईया.

बल-बुद्धि विद्या क हउवा तूं खज़ाना,
वीर हनुमान नियर ख़ुद के पहिचाना.
जोर कसके लगवा बोल हईया,
करा जम के ये बबुआ पढ़ईया.

आलस नासमझी के दूर हो भगावा,
पढ़ले में भईया तूं मनवां लगावा.
पार कई लेबा सगरो चढ़ईया.
करा जम के ये बबुआ पढ़ईया

कलयुग क हउवीं कितबिये देवी-देवता,
मनवां से पूजा इनके इनही के नेवता.
दिहं वरदान पार करिहें ई नईया,
करा जम के ये बबुआ पढ़ईया.

तूहीं हउवा दादा क आशा विश्वास हो,
माई के हउवे ललउ तोहसे बड़ी आस हो.
बदला बिल्डिंग में टूटही मडईया,
करा जम के ये बबुआ पढ़ईया.

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Sunday, December 13, 2015
Topic(s) of this poem: education
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