घटाओं का गाँव Poem by Upendra Singh 'suman'

घटाओं का गाँव

श्याम अलकों की मादक घनी छाँव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.

भाव की उर्मियाँ गीत में ढल गईं,
ज़िन्दगी खूबसूरत ग़ज़ल बन गई.
बेड़ियाँ कट गयीं पंख अब पाँव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.


जुड़ गए तार वीणा जो झंकृत हुई,
रागिनी उर की पावन अलंकृत हुई.
मुक्त निर्झर विहंसता उठा भाव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.


एक अल्हड़ सा झोंका चला झूमकर,
शोख भागा घटाओं को वो चूमकर.
है चकित मुग्ध माँझी के संग नाव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.


चाँदनी पर घटाओं का घूँघट पड़ा,
ले के बारात तारों की चंदा चला.
सृष्टि इठला रही मखमली छाँव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.


चाँद करता घटाओं से अठखेलियाँ,
रूप की राशि पर कौंधती बिजलियाँ.
प्रीति झंकृत हुई उर के उदभाव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.


एक आकाश गंगा उमगती चली,
खिल गई खिलखिला यामिनी मनचली.
स्वर्ग उतरा है अम्बर के इस ठाँव में,
खो गया मन घटाओं के इक गाँव में.

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Tuesday, December 15, 2015
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Renu Singh 18 December 2015

वाह! वाह! बहुत खूब! कल्पना की ऊँची उड़ान, उत्कृष्ट और अनुपम गीत.

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