ज़ुल्मी निगाहें Poem by Upendra Singh 'suman'

ज़ुल्मी निगाहें

ये चेहरा हंसी और ज़ुल्मी निगाहें.
मुझे मार डालेंगी तेरी अदायें.

ये आँखों का काजल ये माथे बिंदिया.
उड़ी ले उड़ी मेरी रातों की निदिया.
कातिल है ये गेसूओं की घटायें.
ये चेहरा हंसी और.....................

ये नाकों की नथुनी ये कानों झुमका.
ये पायल की छम-छम तेरा शोख़ ठुमका.
सितम ढा रही हुस्न की ये फ़िज़ायें.
ये चेहरा हंसी और.........................

सरकना दुपट्टे का तेरा ये मचलना.
मिरे दर्दे-दिल का वो गिरना-संभलना.
तुझे देख गुलशन भी भरता है आहें.
ये चेहरा हंसी और.........................

क़यामत है ज़लवा है बर्के-बदन.
कौन है, कौन है, कौन तूं गुलबदन.
ज़न्नत की वादियों से हैं आती सदायें.
ये चेहरा हंसी और.........................
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Saturday, December 19, 2015
Topic(s) of this poem: love
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