मैं हिंदुस्तान हूँ Poem by Upendra Singh 'suman'

मैं हिंदुस्तान हूँ

कुछ गलत देखेते हैं
कुछ गलत सुनते हैं
तो कुछ तो बोलिये
ये देश ये समाज आपका मुँह जोहते है
श्रीमान जी,
जरा मुंह तो खोलिये.
इस देश और समाज ने आपको ऊँचे सम्मान से नवाज़ा है,
आज़ आपकी आवाज देश की जरूरत है
वक्त का तकाज़ा है.
आखिर ऐसे में चुप रहने का क्या राज है?
क्या आपके भीतर का आदमी
इस देश और समाज से नाराज है?
यदि नहीं,
तो आप इस तरह क्यों चुप हैं?
गोया आप आदमी नहीं कोई बुत हैं.
मान्यवर, आपसे
देश के मान-सम्मान, शांति, सौहार्द के नाम पर
नम्र निवेदन है,
अनुरोध है, गुजारिश है, आवेदन है कि -
गलत को मत सहिये
सच को सच कहिये
वैसे आप प्रबुद्ध हैं, भावों से शुद्ध हैं
परम महान हैं, ‘सेलीब्रिटी' हैं
जाने-माने इंशान हैं
और कई मायने में तो भगवान हैं.
मैं तो दिखने में ठिगना और स्तर में अदना इंसान हूँ,
मगर, अपने आप में भरा-पूरा हिंदुस्तान हूँ.
खून हिन्दू का हो या मुसलमान का
लेकिन जब वो बहता है
या जब कोई मेरे देश की अस्मिता, अस्तित्व पर प्रहार करता है,
तो मेरे भीतर से एक आह सी उठती है
और मेरी आत्मा कराह उठती है.
मैं समानाभूति(Empathy) से सिहर उठता हूँ
और तिलमिलाकर कहता हूँ -
ये गलत है, ये नाजायज़ है
ये बहसी हरक्कत है,
शैतानी रवायत है.
दरअसल, गलत को उसका असली रूप दिखाना
उसको उसका अंजाम बताना
और सच का पूरी सच्चाई के साथ, साथ निभाना
मेरा वसूल, मेरी आदत है
सच कहूँ तो
यही मेरी पूजा है और यही मेरी इबादत है.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Sunday, December 20, 2015
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