कुहरे में साफ-साफ दिखता है Poem by Upendra Singh 'suman'

कुहरे में साफ-साफ दिखता है

Rating: 5.0

मित्रों ने पूछा -
क्या बात है आजकल आप कुहरे पर ही लिख रहे हैं?
क्या उससे कोई खानदानी दुश्मनी है
या कोई और चक्कर है?
बड़े तेवर में दिख रहे हैं.
सोचता हूँ,
अब उन्हें इसकी असली वजह बता दूँ
और अपने भीतर का सच दिखा दूँ,
अन्यथा लोग न जाने क्या-क्या अर्थ लगा बैठेगें
और यदि बात ‘उन' तक गई
तो हम ‘उनको' सफाई देते-देते अपना कान ऐठेगें.
अतः,
इससे पहले की मामला रंगीन हो जाय,
मेरी हालत संगीन हो जाय
और मेरे भीतर का कवि बेचारा दीन-हीन हो जाय.
शब्दों में ढालकर सच आप तक पहुंचा रहा हूँ,
इस भ्रम के कुहरे को चीरकर
मैं ख़ुद आप के पास आ रहा हूँ.
अब कृपया अपनी न गुनिये,
मेरे बारे में मुझसे ही सुनिये.
सारी बातें दिन के उजाले की मानिंद साफ हो जायेंगी
और फिर कोई ऐसी-वैसी वजह नज़र नहीं आयेगी.
दरअसल,
आजकल मैं इस घने कुहरे में
बहुत कुछ बहुत साफ-साफ देख पा रहा हूँ.
यही वजह है कि -
मैं कुहरे पर ही अपनी लेखनी चला रहा हूँ.


उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Sunday, December 20, 2015
Topic(s) of this poem: truth
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
मेरी इस कविता की उत्पत्ति शरद ऋतु के यौवन काल में कुहरे पर मेरे द्वारा अनवरत लिखी जा रही क्षणिकाओं पर स्नेही, सजग व प्रबुद्ध पाठकों की प्रतिक्रिया से हुई. पाठकों ने अपने- अपने अंदाज में इन
क्षणिकाओं की प्रशंसा करते हुये, अपनी जिज्ञासा व प्रश्न रखे. किसी ने पूछा - क्या आप आजकल केवल कुहरे पर ही लिख रहे हैं? किसी ने सवाल रखा - क्या बात है आप कुहरे के पीछे हाथ धोकर पड़ गये हैं? तो किसी ने कहा - सारी कवितायें ठंडक पर ही भाई! ....आदि..आदि. बहरहाल, पाठकों के प्रश्नों और उनकी प्रेरणा से ही अपना आकार-प्रकार व रूप-रंग पाकर यह कविता पाठकों की प्रतीक्षा में यहाँ
पडी है.
उपेन्द्र सिंह 'सुमन'
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 20 December 2015

Very amazing poem on illusion. Wisely drafted and shared definitely. Interesting sharing.10

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