मित्रों ने पूछा -
क्या बात है आजकल आप कुहरे पर ही लिख रहे हैं?
क्या उससे कोई खानदानी दुश्मनी है
या कोई और चक्कर है?
बड़े तेवर में दिख रहे हैं.
सोचता हूँ,
अब उन्हें इसकी असली वजह बता दूँ
और अपने भीतर का सच दिखा दूँ,
अन्यथा लोग न जाने क्या-क्या अर्थ लगा बैठेगें
और यदि बात ‘उन' तक गई
तो हम ‘उनको' सफाई देते-देते अपना कान ऐठेगें.
अतः,
इससे पहले की मामला रंगीन हो जाय,
मेरी हालत संगीन हो जाय
और मेरे भीतर का कवि बेचारा दीन-हीन हो जाय.
शब्दों में ढालकर सच आप तक पहुंचा रहा हूँ,
इस भ्रम के कुहरे को चीरकर
मैं ख़ुद आप के पास आ रहा हूँ.
अब कृपया अपनी न गुनिये,
मेरे बारे में मुझसे ही सुनिये.
सारी बातें दिन के उजाले की मानिंद साफ हो जायेंगी
और फिर कोई ऐसी-वैसी वजह नज़र नहीं आयेगी.
दरअसल,
आजकल मैं इस घने कुहरे में
बहुत कुछ बहुत साफ-साफ देख पा रहा हूँ.
यही वजह है कि -
मैं कुहरे पर ही अपनी लेखनी चला रहा हूँ.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'
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Very amazing poem on illusion. Wisely drafted and shared definitely. Interesting sharing.10