बूझो - Poem by Ajay Srivastava

बूझो -

मासूम और खूबसूरत बच्चे को देख
बच्चे को अपने पेरो पर चलते देख
परिक्षाफल तालिका मे बच्चे नाम सबसे ऊपर देख
विश्वविधालय मे भी वही स्तर देख
समाचार पञ मे प्रतियोगी परिक्षाफल के साथ बच्चे का चिञ देख
बच्चे के हाथ मे उच्च अधिकारी पद की नियुक्ति पञ को देख
बच्चे को जन सेवा करते देख
जन जन द्वारा बच्चे की प्रंशसा करते देख
अपनो के चेहरे पर खुशी को देख
गेरो के चेहरे पर जलन को देख

बूझो तो क्या कहने का मन करता
एक नही तो दो शब्द हर पंक्ति मे लगा दो|

बूझो -
Sunday, January 3, 2016
Topic(s) of this poem: reply
COMMENTS OF THE POEM
Aarzoo Mehek 03 January 2016

Competition ke daur main bachon ke saath walidain bhi is hoR main lag gai... Aise main kahan bachenge rishte aur kahan rahegi masoomiyat bachon ke chehron par. khoobsurat nazm.

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