आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं Poem by Priya Guru

आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं

Rating: 5.0

आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं
बोली है मीठी अगर समझूँ कभी

जब चंदा से पुछू आज कैसी है वो
छिप छिप बादल में कह जाए सब ख्वाइशें तेरी

जब जुगनू से पुछू कभी सुनती है वो
सुन सुन सब कह जाए वो आरज़ूएं तेरी

अगर कहदे कुछ आके ये आंखे तेरी
जो सहजे ना तुझको वो मुझको सही

बस देदे तू मुझको ये दौलत भली
सजादूँ सब इनमे मैं खुशियाँ तेरी

जुस्तजू में तेरी भटकें मुसाफिर भला
इश्क़ में मर जाए बस ख्वाइशें यहीं

आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं
बोली है मीठी अगर समझूँ कभी

Tuesday, January 12, 2016
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 January 2016

आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं बोली है मीठी अगर समझूँ कभी....... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और कल्पनाशीलता. धन्यवाद.

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