एक लम्हा मुझे हर शाम बुलाता है
कुछ ख़ास ही है बस तेरी बात बढ़ाता है
तेरी आँखों की कभी तोह कभी तेरी बात बताता है
कहना कुछ चाहता नहीं शायद, पर मैं सुनता हूँ घोर से
यूँही जो कल था वो मुझे आज बताता है
दीवानो लायक गुफ्तगू में उलझा हूँ जब भी
कहता है मैं तुझसे हूँ और तेरी बात बताता हूँ
शतिरबाजी है उसकी जो हमारे को आज बताकर कल दिखाता है
क्या वो लम्हा तुझको भी बुलाता है
ज्यों मुझे सताकर जाता है, क्या तुझे भी सताता है
क्या होती है शतिरबाजी तेरे सायें में उसकी
तोह क्यों ना हम तुम संग एक शाम सजाते है
टूटे दिए हटाकर उस पल कुछ नए दीपक जलाते है
जो आता है हमारे पास उससे वहाँ बुलाते है
अपनी बात बताते है और अपनी बात कराते है
कहता है मैं तुझसे हूँ और तेरी बात बताता हूँ शतिरबाजी है उसकी जो हमारे को आज बताकर कल दिखाता है.../ मानवीय सोच की परते दिखाती एक रोचक कविता. धन्यवाद, प्रिय गुरू साहिबा.
Ye lamhe hi to humara sarmaya hai...jeelo isko har pal. khoobsurat kavita Priya.
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..जो आता है हमारे पास उससे वहाँ बुलाते है अपनी बात बताते है और अपनी बात कराते है... ...mentioned that moment in a beautiful way! !