कोन से साँचो में तूं है बनाता, बनाता है ऐसा तराश-तराश के,
कोई न बना सके तूं ऐसा बनाता, बनाता है उनमें जान डाल के!
सितारों से भरा बरह्माण्ड रचाया, ना जाने उसमे क्या -क्या है समाया,
ग्रहों को आकाश में सजाया, ना जाने कैसा अटल है घुमाया,
जो नित नियम गति से अपनी दिशा में चलते हैं,
अटूट प्रेम में घूम -घूम के, पल -पल आगे बढ़ते हैं!
सूर्य को है ऐसा बनाया, जिसने पूरी सुृष्टि को चमकाया,
जो कभी नहीं बुझ पाया, ना जाने किस ईंधन से जगता है,
कभी एक शोर, कभी दूसरे शोर से,
धरती को अभिनदंन करता है!
तारों की फौज ले के, चाँद धरा पे आया,
कभी आधा, कभी पूरा है चमकाया,
कभी -कभी सुबह शाम को दिखाया,
कभी छिप -छिप के निगरानी करता है!
धरती पे माटी को बिखराया, कई रंगो से इसे सजाया,
हवा पानी को धरा पे बहाया, सुरमई संगीत बजाया,
सूर्य ने लालिमा को फैलाया, दिन -रात का चकर चलाया,
बदल -बदल के मौसम आया, कभी सुखा कभी हरियाली लाया!
आयु के मुताबिक सब जीवो को बनाया,
कोई धरा पे, कोई आसमान में उड़ाया,
किसी को ज़मीन के अंदर है शिपाया,
सबके ह्रदय में तूं है बसता,
सबका पोषण तूं ही करता!
अलग़ -अलग़ रुप का आकार बनाया,
फिर भी सब कुश सामूहिक रचाया,
सबको है काम पे लगाया,
नीति नियम से सब कुश है चलाया,
हर रचना में रहस्य है शिपाया,
दूृश्य कल्पनाओं में जग बसाया,
सब कुश धरा पे है उगाया,
समय की ढ़ाल पे इसमें ही समाया!
जब -जब जग जीवन संकट में आया,
किसी ने धरा पे उत्पात मचाया,
बन-बन के मसीहा तूं ही आया,
दुनिया को सही मार्ग दिखाया,
तेरे आने का प्रमाण धरा पे ही पाया,
तेरे चिन्हों पे जग ने शीश झुकाया!
इस जग का तूं ही कर्ता,
जब चाहे करिश्में करता,
सब कुश जग में तूं ही घटता,
पल पल में परिवर्तन करता!
बन बन के फ़रिश्ता धरा पे उतरना,
इस जग पे उपकार तूँ करना,
मानव मन में सोच खरी भरना,
जो पल पल प्रकृति से खिलवाड़ है करता!
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Tremendous poem.....wonderfully narrated.....thank you for sharing :)