ज़िन्दगी जीने तक की वजह Poem by Priya Guru

ज़िन्दगी जीने तक की वजह

एक दिन एक रात ही बहूत, होते हैं खुदी को मिटाने में
एक सागर एक कश्ती बहूत, होते हैं दरिया को डुबाने में
ज़िन्दगी जीने तक की वजह कहीं मिलती नहीं अब तो
एक रात एक सांझ बहूत, होते हैं यूँ ग़म को छुपाने में |

Sunday, October 16, 2016
Topic(s) of this poem: missing
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success