धिक्कार जेएनयू Poem by Upendra Singh 'suman'

धिक्कार जेएनयू

दामन का रहा है ये दागदार जेएनयू.
आतंकियों का आका गद्दार जेएनयू.

अब पाक के पाले में है शुमार जेएनयू.
ये कमबख्त, कमीना, मक्कार जेएनयू.

देशद्रोहियों से है अब गुलज़ार जेएनयू.
आतंक का करता है कारबार जेएनयू.

भारत को कर रहा है शर्मसार जेएनयू.
आतंकियों का ठहरा ये यार जेएनयू.

अफज़ल का जताता है आभार जेएनयू.
है दिल्ली की छाती पर सवार जेएनयू.

साम्यवादियों का है ये श्रृंगार जेएनयू.
है जन-गन के मन की दुत्कार जेएनयू.

दहशतगर्दों का है ये पनाहगार जेएनयू.
अब पाक के हाथों का है हथियार जेएनयू.

आतंकियों से करता है प्यार जेएनयू.
फिर भी है अकड़ता गुनाहगार जेएनयू.
आतंकियों का हो गया घर-द्वार जेएनयू
धिक्कार है, धिक्कार है, धिक्कार जेएनयू.

Monday, February 15, 2016
Topic(s) of this poem: dilemma
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