मजबूर वामपंथ Poem by Upendra Singh 'suman'

मजबूर वामपंथ

JNU में जो आस्तीन के सांप
सिर उठा रहे हैं
हमारे वामपंथी भाई
उन्हें दूध पिला रहे हैं।
इतना ही नहीं
प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर से
उनके सुर से सुर भी मिला रहे हैं।
और उन्हें पूरी तरह दूध का धुला बता रहे हैं।
समझदार लोग समझते हैं
कि -
ऐसा करना/कहना
उनकी स्वाभाविक मज़बूरी है
आखिर,
जो अब तक मानसिक रूप से
चीन के गुलाम हैं
चीन के इशारे पर चलना
तो उनके लिए निहायत जरूरी है।
वैसे भी
ऐसा करना तो उनकी पुरानी परंपरा है।
उन जैसे प्रगतिशील के लिए
वतनपरस्ती में क्या धरा है?
अब, उन्होंने ऐसा कह ही दिया
तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है।
उनसे और क्या उम्मीद की जा सकती है
जो बिल्कुल ही चिकना घड़ा है।

Monday, February 15, 2016
Topic(s) of this poem: nature
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