दर्द ए इश्क़ Poem by Ahatisham Alam

दर्द ए इश्क़

ये कह तो दिया कि हम उन्हें भूल गये
मगर सोचो कितना रो रो के भुलाते होंगे
और हम जितनी कोशिश करते होंगे
वो उतना ही और याद आते होंगे

ऐ इश्क तू मेरी जान लेले तड़पते हुए अब रहा नहीं जाता
मज़ा मौत का गवारा है हमको, दर्द इश्क़ का सहा नहीं जाता
उन्हें दिल की गहराइयों से चाहा हमने
ये ही हुई है हमसे ख़ता
ये ज़माने से ज़ाहिर किया तो हमने
मगर न पाये उनको बता ।

Sunday, April 3, 2016
Topic(s) of this poem: love
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