तू एक ख़्वाब सा लगता हैं... Poem by Kamal Mahar

तू एक ख़्वाब सा लगता हैं...

तू एक ख़्वाब सा लगता हैं
तेरा हँसना
दिल को छूने वाला
कोई राग सा लगता हैं...

देखना चाहता हूँ
तेरी आँखों को...हर रोज मैं
पर अकेले में फ़िर
दर्द भी सहना होता हैं...

मेरी ख़ता सिर्फ इतनी हैं
मैं चाहता रहा तुझे तेरी बेखबरी में
शायद इसीलिए आज तू
दूर चाँद सा लगता हैं...

तू एक ख़्वाब सा लगता हैं
मेरी रूह को फ़ना करने वाला
कोई ख्याल सा लगता हैं
तू एक ख़्वाब सा लगता हैं...
तू एक ख़्वाब सा लगता हैं...

Saturday, May 7, 2016
Topic(s) of this poem: love
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Kamal Mahar

Kamal Mahar

Sawai Madhopur
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