बरसात हूँ मैं Poem by Larika Shakyawar

बरसात हूँ मैं

Rating: 5.0

पंच तत्व में से एक तत्व मैं,
जीवन का आयाम हूँ मैं,
प्राकृतिक स्त्रोत हूँ, बारिश की फूआर हूँ मैं!

कुँए, नदी, झरने, तालाब
महासागर की शान हूँ मैं!

बारिश हूँ मैं सिंचाई का साधन
दो वक्त की रोटी, वरदान हूँ मैं!

तप्ते अप्रेल और मई के बाद
हर सम्भव जरूरत, इंतजार हूँ मैं!

रिम झिम गिरे, बरसे सावन
खेत खलियान, प्राणी, किसान
हर मनुष्य की मुस्कुराहट, ठंडा अहसास हूँ मैं!

खुशी हूँ मैं थिरकते पॉवों की,
मिट्टी की सौंधी खुशबू, राखी की आहट हूँ मैं!

प्रथ्वी की सुदंरता हैं मुझसे,
हरियाली को रखती कायम मैं,
नीर हूँ मैं, बरसात हूँ मैं
बहती गंगा का अभिमान हूँ मैं!

Friday, May 13, 2016
Topic(s) of this poem: nature love
COMMENTS OF THE POEM
Kishore Kumar Das 14 May 2016

your lovely poem on rain narrates the rewards of rain so vividly.......full 10 points to you..

1 0 Reply
Larika Shakyawar 15 May 2016

Thank you sir for appreciation and vote

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Rajgarh M.P., India
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