सपने Poem by Tribhuvan Mendiratta

सपने

Rating: 5.0

सपनों का क़त्ल नहीं होता, वे ख़ुदकुशी करते हैं
सपने अपने नहीं होते, बस हम यकीं करते हैं
सपने सुहाने होते हैं, कुछ लोग सब्ज-बाग़ दिखातेंहैं
उस मुस्कराहट को अपनत्व समझ, खुद को भूल जातें हैं
चाहत की सुनवाई किसी - अदालत में नहीं होती
सुनवाई होती - तो भीख़ुदकुशी का इल्जाम ही लग जाता

Thursday, September 19, 2019
Topic(s) of this poem: dreams
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