अंधकार से सकरात्मकता तक Poem by Samar Sudha

अंधकार से सकरात्मकता तक

'वक़्त की कमी थी, आँखों में नमी थी.'


'सपना था या ज़हन था. रूह को न चैन था.'


'होगी कब सुबह आराम सी. की कोशिश पर नाकाम सी.'


'किसी घड़ी छूट जाना था साथ, बातों में थी वो कैसी बात.'


'बस यही कर्म था मेरा, खुशियों में जो छाया अँधेरा.'


'यूँ हुआ प्यार मुझे काल से, और लड़ता रहा सकरात्मकता की ढाल से.'


'सफर यूँ ही गुज़रा, था यूँ ही गुज़र जाना. अब तलवार की चमक देखेगा ज़माना.'


'नोक ना होगी, होगा मुलायम स्पर्श. घटा ना होगी ग़मों की पर होगी ख़ुशी और हर्ष'


-Samar Sudha

Friday, November 11, 2016
Topic(s) of this poem: positiveness
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success