सोचा था नया साल सुनहरा रहेगा Poem by Ahatisham Alam

सोचा था नया साल सुनहरा रहेगा

ये सोचा था नया साल सुनहरा रहेगा
नही था पता दर्द गहरा रहेगा
किसी और के हम होते भी कैसे
तेरी यादों का दिल पे पहरा रहेगा

उस मुसाफिर को मंज़िल मिल न सकेगी
जो रास्तों में ही
ठहरा रहेगा
हँसीं है नज़ारे तो
किस काम के है
मेरी नज़रों में तेरा ही
चेहरा रहेगा
सोचा था नया साल सुनहरा रहेगा
नही था पता
दर्द गहरा रहेगा।

Friday, January 5, 2018
Topic(s) of this poem: love
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