चाणक्य! Poem by rohit kumar choudhary

चाणक्य!

Rating: 3.5

मुझमे आग प्रबल हो, मैं भारत खोज में निकला हूं,
कुंठा कोई अचरज, पनघट पर प्यासा फिरता हूं,
मैं गुरु हूं, मुझमे प्रलय है, मुझमे राह प्रसस्त है,
ज्ञान मेरी दौलत, राज कुबेर पर न्योछाबर करता हूं,
जनपद मुझे दिखता है, रचता नही, यही सत्य है,
एक भारत की अटल प्रतिज्ञा अभी कोशो दूर है!


जन्म से ब्राह्मण हूं, तक्षशिला गुरुकुल का आचार्य हूं,
राज सिंघासन मुझे शोभित नही, कई राज खड़ा कर सकता हूँ,
तुम भयभीत हो धनानन्द, मगध का भाग्य उदय निश्चित है,
याद रख, मैं शांत चित्त का ब्राह्मण एक ज्वाला हूं,
कई लौ प्रबल कर सकता हूँ कई राज परास्त कर सकता हूं,
कलह तुमसे नही, भारत राष्ट्र का उदय मातृभूमि ऋण है!


अर्थ और दंडनीती का ज्ञाता हू, समय का साक्षी हू,
वर्तमान से भयभीत हू, भविष्य उथ्रिष्ठ करने निकला हू,
सुन सके तो सुन देवो की प्रचंड ध्वनि विध्धमान हू,
उतिष्ठ भारत: का आह्वाहन हूं, समर शेष का शंखनाद हूं,
अपमानित होने का भय नही, राष्ट्र गौरव सर्वोपरी है,
जय है, पुरुषार्थ है, अखंड भारत मेरा प्रण है!


मै तखक्षिला शिष्य, मै चाणक्य पुत्र विष्णु
मैं कौटिल्य, मै भारत का अमर भाग्य लिखने आया हूँ,
बुद्ध - महावीर की धरा से, पाटलीपुत्र की ज्ञान सभा से आह्वाहन है
बिगुल होगा अम्बर में, दशो दिशाओं में कम्पन होगा,
साक्षी होगा पवन, आताशय धराशाही होगा,
गुंजायमान जय गीत होगा, जय जय भारत का यशगान होगा, तुम्हे भारतपुत्र होने का अभिमान होगा!

Friday, December 2, 2016
Topic(s) of this poem: historical
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