Gazal 2 Poem by rohit kumar choudhary

Gazal 2

जाने किस पर आफत आई है, फिर से वो बन संवर कर निकली है।
दिखती है मासूम मगर वो जालिम है, ये महखाने मे हर आशिक़ कहता है।
शाम को कुछ खबर ही नही है, ये शहर रात क्या गुल खिलाता है।
मर गया जो कोई नजर की चाह में, वो जनाजा महखाना गुलज़ार करता हैं।
उलझन है ऐसी सुलझती नही है, सच्ची मोहहब्बत इस जमाने में मिलती नही है।
कोई रोक लो चलती शबाब को, जाने कितने डूब जायेंगे शराब में।
कोई इत्तालाह कर दो उस दीवाने को, ये सफर कुछ दूर पर थम जायेगा।
फ़र्ज़ है नक़ाब हटा दो, वो तो आशिक़ है बस इमान जानता हैं।
किस्सा मोहहब्बत के अंजाम का अब काम नही आएगा, फिर कोई 'रोहित' एक बेवफ़ा से दिल लगा बैठा है।

Wednesday, December 21, 2016
Topic(s) of this poem: love
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