ये जो पढ़ रहे हो Poem by Ahatisham Alam

ये जो पढ़ रहे हो

ये जो पढ़ रहे हो सुन रहे हो
और दिल में जितने भी ख़्वाब बुन रहे हो
ये मेरी वफ़ा की दलील है
कभी पास आके
ख़्वाब दिखा के
हुये दूर क्यों हो
ये दुनियां सजा के
कह दिया मैंने ये
खुद को मिटा के
ये जो पढ़ रहे हो सुन रहे हो
ये मेरी वफ़ा की दलील है।

Wednesday, September 25, 2019
Topic(s) of this poem: love
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
As
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success