पढ़ना सुनना लिखना अच्छा लगता है Poem by Lalit Kaira

पढ़ना सुनना लिखना अच्छा लगता है

पढ़ना सुनना लिखना अच्छा लगता है
उसको अपना कहना अच्छा लगता है

एक समंदर पीर छुपाये बैठे हैं वो
फिर भी उनको हँसना अच्छा लगता है

वो जो हमको छोड़ गया था नफरत से
उसको मेरा नगमा अच्छा लगता है

प्यार लुटाते हुए हमारे नटवर को
गलियों गलियों बिकना अच्छा लगता है

रुकता हूँ तो मौत डराने लगती है
दरिया दरिया बहना अच्छा लगता है

उलझे रहते हो तुम किसकी बातों में
हमको मन की करना अच्छा लगता है

जिस सिम्त तुम्हारी यादें हल्ला करती हैं
आँसू से मुँह धोना अच्छा लगता है

रो लेते हैं दिल हल्का हो जाता है
वरना किसको रोना अच्छा लगता है

यही वजह है मकाँ अभी तक लिया नहीं
ललित दिलों में बसना अच्छा लगता है

Monday, March 27, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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