पढ़ना सुनना लिखना अच्छा लगता है
उसको अपना कहना अच्छा लगता है
एक समंदर पीर छुपाये बैठे हैं वो
फिर भी उनको हँसना अच्छा लगता है
वो जो हमको छोड़ गया था नफरत से
उसको मेरा नगमा अच्छा लगता है
प्यार लुटाते हुए हमारे नटवर को
गलियों गलियों बिकना अच्छा लगता है
रुकता हूँ तो मौत डराने लगती है
दरिया दरिया बहना अच्छा लगता है
उलझे रहते हो तुम किसकी बातों में
हमको मन की करना अच्छा लगता है
जिस सिम्त तुम्हारी यादें हल्ला करती हैं
आँसू से मुँह धोना अच्छा लगता है
रो लेते हैं दिल हल्का हो जाता है
वरना किसको रोना अच्छा लगता है
यही वजह है मकाँ अभी तक लिया नहीं
ललित दिलों में बसना अच्छा लगता है
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem