हलाहल सहज सहर्ष निज कंठ में
ऐसा वीर शिरोमणि ही है धरता,
क्रोध में है जिसके हठात
सकल सृष्टि विनाश की क्षमता।
अवरोधों से कोमल शब्दों में
करता वही प्रीतिकर मधुर विनय,
अवज्ञा होने पर क्रोधाग्नि में जो
कर सके विघ्नों का सम्पूर्ण क्षय।
अतिथियों आगंतुकों के चरण कमल
सगर्व सोद्यत धोता वही है
जिससे बलात कार्य कराने की
धृष्ट क्षमता किसी में नहीं है।
शांतिदूत बनकर निर्भय निःशंक
जाता वही अधम शत्रु के समक्ष,
उद्दण्ड कृत्य पर जो अरि के
दिखा सके विराट स्वरुप प्रत्यक्ष।
वीरों का है एक पृथक विश्व,
असाधारण उसके नियम आचार।
अंगीकार करें यदि उन्हें सर्वजन,
हो जाए स्वर्गतुल्य यह संसार।।
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