हर शख़्स यहां दिलों मे
बारूद लिये घूमता है
शोलों की मोहब्बत में
चिंगारी ढूँढता है
चिंगारी की टोह में खुद ही
माचिस पर जा बैठता है
बेतुकी बातों पर भी
जाने क्यों आपा खो देता है
अमन चैन को भूलकर
अंगारे बरसाने पर राज़ी रह्ता है
हर शख़्स यहां दिलों मे
बारूद लिये घूमता है
आसमान में उड़ते परिन्दों को
बेहोशी मे धुनता है
आतंक के ज़हरीले पौधों को
अपने आंगन में पालता है
इस जहाँ में फिर नफ़रत के
काँटे और हथियार बाँटता है
हर शख़्स यहां दिलों मे
बारूद लिये घूमता है
ताज की चाहतों मे
आज को ठोकरों में उड़ा देता है
ऊँची उड़ान उड़कर
औरो को रेंगते देखना चाहता है
नापाक इरादों को भुनाने को
चारों तरफ आग ही आग ढूँढता है
जिंदगी के फलसफे को भूलकर
शोलों की बारिशो मे नहाता है
नफ़े नुकसान के तराजू मे
माँ बाप तक को तोलता है
अपनी मुसीबतों का ठीकरा
औरो के सिर पर फोड़ता है
हर रास्तों को अपने हिसाब से मोड़ता है
अपने हर उधार को कई गुना कर
नई पौध में जोड़ता है
परवरदिगार की रहमतों को
बेसबब कर छोड़ता है
शोलों की मोहब्बत में
चिंगारी ढूँढता है
हर शख़्स यहां दिलों मे
बारूद लिये घूमता है
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