बारूद लिये घूमता है Poem by Kezia Kezia

बारूद लिये घूमता है

हर शख़्‍स यहां दिलों मे

बारूद लिये घूमता है

शोलों की मोहब्बत में

चिंगारी ढूँढता है

चिंगारी की टोह में खुद ही

माचिस पर जा बैठता है

बेतुकी बातों पर भी

जाने क्यों आपा खो देता है

अमन चैन को भूलकर

अंगारे बरसाने पर राज़ी रह्ता है

हर शख़्‍स यहां दिलों मे

बारूद लिये घूमता है

आसमान में उड़ते परिन्दों को

बेहोशी मे धुनता है

आतंक के ज़हरीले पौधों को

अपने आंगन में पालता है

इस जहाँ में फिर नफ़रत के

काँटे और हथियार बाँटता है

हर शख़्‍स यहां दिलों मे

बारूद लिये घूमता है

ताज की चाहतों मे

आज को ठोकरों में उड़ा देता है

ऊँची उड़ान उड़कर

औरो को रेंगते देखना चाहता है

नापाक इरादों को भुनाने को

चारों तरफ आग ही आग ढूँढता है

जिंदगी के फलसफे को भूलकर

शोलों की बारिशो मे नहाता है

नफ़े नुकसान के तराजू मे

माँ बाप तक को तोलता है

अपनी मुसीबतों का ठीकरा

औरो के सिर पर फोड़ता है

हर रास्तों को अपने हिसाब से मोड़ता है

अपने हर उधार को कई गुना कर

नई पौध में जोड़ता है

परवरदिगार की रहमतों को

बेसबब कर छोड़ता है

शोलों की मोहब्बत में

चिंगारी ढूँढता है

हर शख़्‍स यहां दिलों मे

बारूद लिये घूमता है

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Sunday, April 9, 2017
Topic(s) of this poem: philosophical
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