ए गुजरे पथों के राहगीरों
भला हुआ जो तुमने रास्तों को
पहले ही नाप लिया
आज गंगा और यमुना मैली हो चुकी हैं
पावन जल को तरस रहे हैं
खेतों में धन उगाने वाले किसान
जान गंवाने पर मजबूर हो रहे हैं
अनाज के दाने और शाक सब्ज़ियाँ
प्लास्टिक से उपजाये जा रहे हैं
बालक बचपन में खेल
खिलौनों से ऊब रहे हैं
ए गुज़रे पथों के राहगीरों
रोटी के लिये कमाता था पहले
आज दौड़ने के लिये कमाता है
कुँए खाली हैं खेत खलिहान खाली हैं
मंच भरा है झूठे वादो के नारों से
हवा में विष घुल रहा है
साँस लेने को भी ढूँढ रहा है
मन मे विष उपज रहा है
कैसी फसल इंसान काट रहा है
धरती की गरिमा और हरियाली को
अपने हित में उजाड़ रहा है
इस नकली माहौल मे खुद
खुद भी नकली हुआ जा रहा है
ए गुजरे पथों के राहगीरों
भला हुआ जो तुमने रास्तों को
पहले ही नाप लिया
*****
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
यह एक आम धारणा है कि पिछले पचास सालों में हमारा माहौल ही प्रदूषित नहीं हुआ बल्कि मनुष्य की सोच भी प्रदूषित हो गयी है. जीवन के हर पक्ष में कृत्रिमता या बनावटी विस्तार. विचारोत्तेजक कविता. धन्यवाद. आज गंगा और यमुना मैली हो चुकी हैं / कुँए खाली हैं खेत खलिहान खाली हैं हवा में विष घुल रहा है / कैसी फसल इंसान काट रहा है
thanks sir, for valuable feedback